Monday, November 25, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

नियम-कायदों से जुड़े बुनियादी सवाल उठाना भी अगर अब साहसिक काम बनता जा रहा हो, या उसे समाज ने ग़ैर-ज़रूरी मान लिया हो तो लोकतंत्र के अस्तित्व की चिंता करनी चाहिए, न जाने आगे कितने मौक़े मिलें, या न मिलें.
कुछ बुनियादी सवाल जिनके जवाब महामहिम भगत सिंह कोश्यारी से माँगे जाने चाहिए, वे खुद भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, अनुभवी राजनेता रहे हैं.
उनके सामने दुविधा रही होगी, ऐसा लगता है कि उन्होंने नियमों का पालन करने की जगह, आदेशों का पालन करना बेहतर समझा.
वैसे कोश्यारी कोई पहले राज्यपाल नहीं हैं जिन्होंने नियमों की जगह आदेश का पालन किया हो, बीसियों ऐसे उदाहरण हैं जब नियम-कानूनों को धता बताते हुए, राज्यपाल ने केंद्र सरकार के आदेशपाल की भूमिका निभाई. कांग्रेस के ज़माने में रोमेश भंडारी और बूटा सिंह यही करते पाए गए थे.
1. पारदर्शिता- राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफ़ारि
3.प्रावधान- राज्यपाल ने एनसीपी की बैठक करके पार्टी की तरफ़ से आधिकारिक चिट्ठी लाने की मांग अजित पवार से क्यों नहीं की? इतनी क्या हड़बड़ी थी कि एनसीपी की बैठक और उसकी आधिकारिक चिट्ठी का इंतज़ार तक नहीं किया गया?
4.नैतिकता- गुपचुप शपथ दिलाकर 30 नवंबर तक यानी एक हफ़्ते का समय सत्ताधारी पक्ष को दिया गया है, क्या राज्यापाल नहीं जानते कि इस हफ़्ते में क्या कुछ होगा, क्या हथकंडे अपनाए जाएंगे और यह सब लोकतंत्र के लिए कितना अशुभ होगा?
उनके अपने ही राज्य उत्तराखंड की तीन साल पुरानी घटना उन्हें ज़रूर याद होगी जब अदालती लड़ाई के बाद कांग्रेस के हरीश रावत ने मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी दोबारा हासिल की थी. यह मामला भी अदालती लड़ाई से तय होगा, ऐसा ही दिख रहा है.
5. औचित्य- राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफ़ारिश और गुपचुप शपथ ग्रहण के बीच जितना समय लगा उसमें या तो प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया. अगर किया गया तो न केवल राज्यपाल बल्कि देश का पूरा शासन तंत्र जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट, शीर्ष सरकारी अधिकारी सब रात भर जगकर काम करते रहे? आख़िर क्यों? इसका जवाब सबसे मांगा जाना चाहिए. इतनी तत्परता क्या आपको पुलवामा के हमले के बाद दिखी थी?
सर्जिकल स्ट्राइक देश के दुश्मनों के ख़िलाफ़ किया जाता है, अब यह जायज़ राजनीतिक विपक्ष के ऊपर भी होने लगा है.
ये वाजिब सवाल पूछे जाने चाहिए, इनके जवाब मिलने चाहिए. आप किसी भी पार्टी के समर्थक हो सकते हैं लेकिन इन सवालों के पूछने या न पूछने से तय होगा कि आप लोकतंत्र के समर्थक हैं या नहीं.
विजय और न्याय में अंतर कर पाने भर विवेक अगर नागरिकों में होगा तो ही लोकतंत्र का भविष्य है.
श उन्होंने कब की, किस आधार पर की? अगर इतना बड़ा फ़ैसला किसी भी लोकतंत्र में किया जाता है तो जनता को उसके बारे में बताया जाता है, चोरी-छिपे, रात के अंधेरे में ऐसे फ़ैसले नहीं किए जाते.
2. विधान-संविधान- राष्ट्रपति शासन लगाने और हटाने की एक तयशुदा संविधान-सम्मत प्रक्रिया है. राज्यपाल अपनी सिफ़ारिश राष्ट्रपति को भेजते हैं, राष्ट्रपति के यहां से वह प्रधानमंत्री को भेजी जाती है, प्रधानमंत्री कैबिनेट की बैठक बुलाते हैं, फिर राष्ट्रपति को कैबिनेट की राय बताई जाती है. राष्ट्रपति इसके बाद राष्ट्रपति शासन को लगाने या हटाने के आदेश पर अपनी मुहर लगाते हैं. ये सब कब हुआ? कहाँ हुआ?
इस सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है "यह 'एलोकेशन ऑफ़ बिज़नेस रूल्स' के रूल नंबर 12 के तहत लिया गया फ़ैसला है और वैधानिक नज़रिए से बिल्कुल दुरुस्त है."
रूल नंबर 12 कहता है कि प्रधानमंत्री को अधिकार है कि वे एक्स्ट्रीम अर्जेंसी (अत्यावश्यक) और अनफ़ोरसीन कंटिजेंसी (ऐसी संकट की अवस्था जिसकी कल्पना न की जा सके) में अपने-आप निर्णय ले सकते हैं. क्या ये ऐसी स्थिति थी?

Monday, November 4, 2019

عن التحدي والحب والاختلاف رسائل من رسامات شابات

مكتوبة بالفرنسية، والعربية الفصحى، والدارجة اللبنانية وصلت نصوص المدوّنة الجديدة من فنانات شابات حول رسّامة المكسيك الشهيرة فريدا كالو.
ملفتٌ جدا كيف تكتب كل واحدة بأسلوب خاص بها، ممتع ورشيق، يشبهها. ربما لأنهن لسن معتادات على الكتابة والنشر، وبالتالي عقولهن ليست محشوّة بجمل جاهزة وكلمات نعتقد - نحن من تدربنا على "قواعد" الكتابة - أنها يجب أن تترافق دائما. أُعجب جدا بقدرتهن على الكتابة ببساطة ووضوح وشجاعة وعدم الخجل من أفكارهن؛ وأفكّر في أني لا أزال أواجه صعوبة في تطوير أسلوب تدوين شخصي خاص بي عندما أكتب هنا، بعيدا عن الكتابة الصحفية. ألقي باللوم على التصاقي المستمر بتكنولوجيا مرهقة بقواعدها التي لا تسمح بالتقاط النفس؛ تويتر يسمح بـ 280 حرفا فقط، ورسالة فيسبوك الصوتية تتوقف بعد دقيقة، وواتساب أراحنا من الكتابة أساسا. أعِدُ نفسي كل فترة أن أبتعد عن كل هذه التكنولوجيا لأستعيد بعض الهدوء، ولا أستطيع.
بلهفة أنتظر أن تصل ترجمة نص "سيليا" الذي كتبته بالفرنسيّة تلك الصبية الجزائرية. وأثناء ذلك أبدأ بقراءة تدوينة أخرى كتبتها “كرستينا” بالدارجة اللبنانية فأستبدل بحرصٍ مبالغ فيه بعضا من كلماتها بأخرى من العربية الفصحى لتصل إلى أكبر عدد ممن يود فهم ما تريد قوله تماما. اللغة يجب ألا تكون عائقا بوجه التواصل،
في الوقت الحالي لا جديد في حياتي سوى الروتين، وانتظار أن تخبريني عن مغامراتك في مالي، الأشياء التي اكتشفتِها، والأشخاص الذين التقيتهم، يخيّل لي أن الحياة مختلفة هناك!
أدرك الآن أني لا أعرف شيئا عن مالي، حتى أني لا أذكر اسم أي شخصية من هناك، على الرغم أن بلدينا متلاصقان. ألا يوجد في مالي عباقرة وفنانون؟ ألا توجد ثقافة وتاريخ؟ هل تمكنوا من الالتفاف حول مفهوم الشهرة رغم صعوبة هذا الأمر؟ هاهاها.
كل ما نعرفه عن هذه البلاد ترهات وأخبار سخيفة معظمها غير دقيق، فمعظم المعلومات تصبّ من فم الأب داخل أذان الأولاد وهم مجتمعون على مائدة العشاء بعد نهار عمل متعب. والأب بدوره غالبا ما يكون قد سمع تلك الكلمات من زميله في العمل الذي بدوره أيضا قد سمعها من إحدى شاشات التلفزة التي ترمي المعلومات جزافا.
هو وغيره من الناس لا يتعمدون نقل المعلومات الخطأ، لكن طبيعة الحياة في بلادنا لا تسمح لهم بتحري دقة المعلومات، فنهارهم يبدأ مع العمل، والاستراحات القصيرة تقتصر على ندب الأوضاع الصعبة، وسرد بعض الأحاديث التي تتخللها معلومات من هنا وهناك.
للأسف هكذا نحملُ الصور النمطية والسلبية والمتخيلة عن الناس والبلاد وكل الأشياء تقريبا، من قبل أشخاص لم يوجدوا أصلا هناك، تاركين لنا مهمة إحياء هذه الصور التي تركها المستعمرون طوال هذه السنين، لدرجة أنك ذهبت إلى مالي وخوف الإصابة بالملاريا يسكنك، وكأن هذا المرض هو الشيء الوحيد في هذا البلد. هل تتذكرين؟
وبعض الشابات غير متقنات للعربية الفصحى، لكنهن خطون خطوة تجاهنا وكتبن ما يدور في أذهانهنّ وما يمررن
لشدة حماستي لموضوع هذه المدوّنة، عن الرسّامة فريدا، زرت مرتين معرض مقتنياتها الذي افتتح في حزيران/يونيو في متحف فيكتوريا أند ألبرت الشهير في لندن. يبدو أنّ فريدا كانت حزينة جدا وقوية جدا؛ ترتدي دائما تنانير طويلة من قماش بلدها المكسيك حبا بثقافة بلدها ولتخفي أيضا ساقا لا تحبها بعد أن أتلفها شلل الأطفال؛ تستخدم مرايا وهي ممدة في فراشها لترسم على الكورسيه (المشد) الذي اضطرت لارتدائه لمساعدة عمودها الفقري بعد حادث سير كاد أن يودي بحياتها تعرضت له في عمر ١٨؛ كانت تضفر شعرها وتزينه بشرائط وورود ملوّنة حتى عندما لم تكن تتوقع زوارا.
ما عرفته أيضا عنها أنها كانت تحب كتابة الرسائل كثيرا؛ تكتب لأطبائها ولزوجها ولوالدها. لذا اتفقت مع فنانات شابات من أربع مدن أن يكتبن رسالة لأي شخص يخترنه ويخبرنه عن شيء يردن فعلا قوله لتكون رسائلهن مادة هذه المدوّنة.
فيه من تجارب خاصة مرتبطة بالمكان الذي يعشن فيه وتاريخ هذا المكان.
كفريدا، التي تعلمت حب التفاصيل وصور البورتريه من والدها الذي كان يعمل مصورا، كان “وليد” المدرب الأول ليديّ إيمان. توفي فجأة وليد، والد إيمان، ومنذ أشهر تعمل عن معرض عنه وعن العلاقة الروحيّة التي جمعتهما، وتكتب إيمان، التي تركت سوريا لتعيش في لبنان، عن ذلك.
وكرستينا بدأت مشروع رسم تعرضه على صف
لكنني عندما أفكر بأوروبا، فإنني أحمل صورة أخرى ومختلفة. كل شيء تقريبا يبدو
جميلا ونظيفا ومرتبا. كل شيء أخضر، وأستطيع أن أذكر لك عشرات الشخصيات المهمة، من الفرنسيين تحديدا. اسأليني فقط. هل تتابعين الأخبار؟ لقد اتفق الجزائريون بشكل عفوي على تشجيع المنتخب الفرنسي لكرة القدم. أرى في كل مكان شعارات التشجيع: "يلا بوكبا.. يلا مبابي".
هاهاها، في ذلك اليوم قرأت تعليقا أضحكني: "شكرا للجزائريين على تشجعينا لكن وبالرغم من ذلك لن تحصلوا على التأشيرة".
قبل أن أبدأ الكتابة لك، كنت أقرأ مقالة عن امرأة قامت بجمع رسائل عديدة من نساء تعرضن للتحرش الجنسي من رجال سكارى في شوارع باريس حين خرجن للاحتفال بفوز فرنسا بالمونديال. كل ما وصلنا من أخبار عن ذلك اليوم كان صور الفرنسيين فرحين بفور فرنسا، ولم يذكر أحد ما حصل لتلك النسوة اللاتي عشن أسوأ ليلة في حياتهن.
لكن دعينا من أخبار الآخرين. لقد سألتني سابقا عن أخبار عملي و"فني"، لا أعلم، لم أفعل شيئا مؤخرا، أعاني صعوبة في الرسم والتلوين والنحت، أخربش هنا وهناك. بعد دخولي مدرسة الفنون بدأت الأمور تختلط بالنسبة لي بشكل مختلف. هل أرسم بخطوط متوازية في اتجاه واحد؟ أم هل أستطيع خلط اللون بآخر؟ ولكن الحقيقة أن الأمر لا يقف عند التقنية فقط، فالأساتذة أيضا لا يعطونك وحدك حرية اختيار الموضوع، عليك دائما أن تحكي حكاية ما أو أن توجهي رسالة. الموضوع عندهم دائما يجب أن يكون عن الموضة السائدة الآن، أن يجذب أكبر قدر من الناس، والأهم من ذلك يجب أن تتعلم كيف تتكلم، بالأحرى كيف تتفلسف لينال عملك الإعجاب اللازم.
في واقع الحال، كل ذلك لكي تثيري إعجاب المدرس ليمنحك بعض النقاط لتتنافسي بها مع زملائك، أو لتثيري الحيرة داخل معرضك أمام جمهور الفن الذي غالبا ما يدعي أنه يلتقط عمق الفكرة.هذا يذكرني بجملة قالها تارانتينو: "ينتظرون من عملك أن يكون له معنى، لكن حياتهم بلا معنى".
البارحة شاهدت بعض الصور من معرض في الجزائر العاصمة، وشعرت أني أشاهد نفس العمل، مع لون أصفر مضاف هنا، وبعض الدوائر هناك، ولكن في النهاية كل الصور متشابهة. هذه الصور المسبقة التي ينتظرها الجميع منك كفنان. والكل يساهم في تعزيزها لدرجة أنها غطت ما هو حقيقي. كل هذا هراء. ما زالوا يرسمون قوارب المهاجرين بطريقة مبتذلة في كل مكان. وكأن تجار الفن أعطونا جميعا وصفة نجاح واحدة وفي النهاية كل شيء متشابه. قارب الموت هو نفسه، بعدة أشكال لكنه نفسه. حتى أننا نشاهد نفس الأخبار ونتحدث جميعا في نفس المواضيع ونفكر في الأفكار ذاتها التي تجتاح الوسط الفني. ولكن لاحقا قد تلاحظين أنك فعلت كل ما طلبوه منك. حتى الفن لم يكن كما تحبين أنتِ، بسبب كل هذا لا أقدر على العمل.
أتمنى لو كانت الحياة بسيطة كما هي لدى الأطفال، عندما كنت أرسم ما أحب دون اكتراث بما يقال عن لوحاتي. على الرغم من هذا كله هناك بعض من الأعمال الفنية التي تقدم أفكارا وحقائق جديدة تجعلني أبتسم. ويبقى ذاك المشاهد المصاب بالملل من حياته الهادئة ينظر إلى لوحة القارب، القارب الحقيقي الموجود أصلا خارج اللوحة.
حتها على إنستغرام عنوانه "مش حلو البنت.." بعد كثرة التعليقات على أنف أختها غير الموافق للمواصفات المتوقعة ليسمّى جميلا. أكثر ما هو معروف عن فريدا أنها تركت حاجبيها متصلين دون إزالة "الشعر الزائد" الذي يؤرق النساء، كذلك كرستينا ترفض معايير الجمال المتعبة والمفروضة على المرأة. ومن تدوينتها نعرف أكثر عن حياة مراهقة مرهقة في لبنان.
وسيليا من الجزائر تكتب غاضبة عن علاقة إشكالية تزعجها عند التعامل مع مستعمر سابق، وعن طريقة التفكير حاليا عند التعامل مع العمل الفني. يزعجها أن الفن أصبح متشابها جدا وتقول إنها أيضا لا ترسم خيالات، بل ترسم حياتها.
أما شامة المغربية فاكتشفت أصولها الأمازيغية وكان الرسم صلتها الوحيدة مع تلك الجذور التي "لم تكن حرة" في التعبير عنها.
لمن سيقرأ هذه الرسائل ويحب الرد عليها، فليكتب لنا.. بأية لغة.