Wednesday, December 19, 2018

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

समंदर के पानी से नमक को अलग कर एक विकल्प है. इस प्रक्रिया को डिसालिनेशन यानी विलवणीकरण कहा जाता है. दुनिया भर में यह तरीक़ा लोकप्रिय हो रहा है. विश्व बैंक के अनुसार मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका के देशों में विलवणनीकरण की प्रक्रिया की क्षमता पूरी दुनिया की आधी है. दुनिया भर के 150 देशों में समंदर के पानी से नमक अलग कर इस्तेमाल किया जा रहा है.
इंटरनेशनल डिसालिनेशन एसोसिएशन (आईडीए) का अनुमान है कि दुनिया भर में 30 करोड़ लोग पानी की रोज़ की ज़रूरते विलवणीकरण से पूरी कर रहे हैं. हालांकि विलवणीकरण की प्रक्रिया भी कम जटिल नहीं है. ऊर्जा की निर्भरता भी इन इलाक़ों में डिसालिनेशन पावर प्लांट पर है. इससे कार्बन का उत्सर्जन होता है. इस प्रक्रिया में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल होता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रक्रिया से समुद्री पारिस्थितिकी को नुक़सान पहुंच रहा है.
आईडीए की महासचिव शैनोन मैकार्थी का कहना है कि खाड़ी के देशों में विलणीकरण की प्रक्रिया से पानी घर-घर पहुंचाया जा रहा है. मैकार्थी के अनुसार कुछ देशों में पानी की निर्भरता विलवणीकरण पर 90 फ़ीसदी तक पहुंच गई है.
मैकार्थी कहती हैं, ''इन देशों में विलवणीकरण के अलावा कोई विकल्प नहीं है.'' इस तरह के अपारंपरिक पानी में काफ़ी खर्च आता है और ग़रीब देशों के लिए यह आसान प्रक्रिया नहीं है. ऐसे में यमन, लीबिया और वेस्ट बैंक में अब लोग ग्राउंड वाटर पर ही निर्भर हैं.''
तलमीज़ अहमद का कहना है कि सऊदी भले अमीर देश है, लेकिन वो खाद्य और पानी के मामले में पूरी तरह से असुरक्षित है.
वो कहते हैं, ''खाने-पीने का सारा सामान सऊदी विदेशों से ख़रीदता है. वहां खजूर फल को छोड़ किसी भी अनाज का उत्पादन नहीं होता है. ग्राउंड वाटर के भरोसे तो सऊदी चल नहीं सकता क्योंकि वो बचा ही नहीं है. पिछले 50 सालों से सऊदी समंदर के पानी से नमक अलग कर इस्तेमाल कर रहा है. यहां हर साल डिसालिनेशन प्लांट लगाए जाते हैं और अपग्रेड किए जाते हैं. ये बिल्कुल सच है कि इस प्रक्रिया में बहुत खर्च आता है और यह ग़रीब मुल्कों की वश की बात नहीं है. यमन ऐसा करने में सक्षम नहीं है. मुझे नहीं पता कि लंबे समय में डिसालिनेशन कितना सुलभ होगा या किस तरह की जटिलता आएगी.''
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब का शुमार दुनिया के उन देशों में है जो अपने नागरिकों को पानी पर सब्सिडी सबसे ज़्यादा देता है. 2015 में सऊदी ने उद्योग धंधों में पानी के इस्तेमाल पर प्रति क्यूबिक चार रियाल से बढ़ाकर 9 रियाल टैक्स कर दिया था. रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार घरों में इस्तेमाल के लिए पानी पर भारी सब्सिडी देती है इसलिए पानी महंगा नहीं मिलता.
तलमीज़ अहमद कहते हैं कि सऊदी ने अपनी ज़मीन पर गेहूं उगाने की कोशिश की थी, लेकिन बहुत महंगा पड़ा था. वो कहते हैं, ''सऊदी ने गेहूं फील्ड बनाया. इसके लिए सिंचाई में इतना पानी लगने लगा कि ज़मीन पर नमक फैल गया. कुछ ही सालों में यह ज़मीन पूरी तरह से बंजर हो गई. वो पूरा इलाक़ा ही ज़हरीला हो गया. पूरे इलाक़े को घेर कर रखा गया है ताकि कोई वहां पहुंच नहीं सके. सब्ज़ी उगाई जाती है लेकिन बहुत ही प्रोटेक्टेड होती है. खजूर यहां का कॉमन पेड़ और फल है. खजूर एक ऐसा फल है जिसमें सब कुछ होता है. हालांकि ज़्यादा खाने से शुगर बढ़ने का ख़तरा रहता है. यहां पेड़ काटना बहुत बड़ा जुर्म है.''
सऊदी अरब ने जब आधुनिक तौर-तरीक़ों से खेती करना शुरू किया तो उसका भूजल 500 क्यूबिक किलोमीटर नीचे चला गया. नेशनल जियोग्राफी के अनुसार इतने पानी में अमरीका की एरी झील भर जाती.
इस रिपोर्ट के अनुसार खेती के लिए हर साल 21 क्यूबिक किलोमीटर पानी हर साल निकाला गया. निकाले गए पानी की भारपाई नहीं हो पाई. स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज इन लंदन ने सऊदी में पानी निकालने की दर एक रिपोर्ट तैयार की है.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सऊदी ने चार से पांच चौथाई पानी इस्तेमाल कर लिया है. नासा की एक रिपोर्ट का कहना है कि सऊदी अरब ने 2002 से 2016 के बीच 6.1 गिगाटन भूमिगत पानी हर साल खोया है.
जलवायु परिर्तन के कारण अरब के देशों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ रहा है. पूरे मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका पर जल विहीन होने का संकट गहरा रहा है. संभव है कि इंसान पेट्रोल के बिना ज़िंदा रह ले लेकिन पानी के बिना तो मनुष्य अपना अस्तित्व भी नहीं बचा पाएगा. और सऊदी अरब इस बात को बख़ूबी समझता है.

Wednesday, December 5, 2018

السيسي "معجب" بآلية عسكرية أمريكية (فيديو)

أشاد الرئيس المصري عبد الفتاح السيسي، بإحدى العربات الحربية المتواجدة بالجناح المصري في المعرض الدولي للصناعات الدفاعية والعسكرية "إيديكس 2018".
وعلق السيسي خلال جولته بالجناح المصري، أثناء لقائه بممثل إحدى الشركات الأمريكية العارضة والتي تتعاون مع مصر، قائلا:" نحن نتعامل من سنين عديدة معكم، وهذه العربة عظيمة جدا، نستخدمها في مكافحة الإرهاب في سيناء".
ويعقد المعرض الدولي "إيديكس 2018"، الذي تنظمه القوات المسلحة بالتعاون مع وزارة الإنتاج الحربي، والهيئة العربية للتصنيع والشركة العالمية للبصريات، في الفترة من 3 إلى 5 ديسمبر الجاري.
أعرب بابا الفاتيكان فرانسيس عن قلقه إزاء وضع القدس خلال لقائه مع الرئيس الفلسطيني محمود عباس، ودعا للحفاظ على هوية المدينة المقدسة للديانات الإبراهيمية الثلاث.
وجاء في بيان صادر عن الحبر الأعظم في أعقاب اللقاء أن "اهتماما خاصا أعير لوضع القدس، مع التأكيد على أهمية الاعتراف بهويتها والحفاظ عليها وعلى القيمة العامة للمدينة المقدسة للديانات الإبراهيمية الثلاث".
وأكدت الفاتيكان على ضرورة استئناف عملية السلام بين إسرائيل والفلسطينيين، والتسوية على أساس حل الدولتين.
وحسب وكالة "وفا" الفلسطينية الرسمية، أطلع الرئيس الفلسطيني محمود عباس البابا فرانس على "تطورات الأوضاع في الأراضي الفلسطينية، وتداعيات قرارات الإدارة الأمريكية بخصوص القضية الفلسطينية، خاصة قرارها الاعتراف بالقدس عاصمة لإسرائيل، ونقل سفارتها إليها".
وتطرق عباس إلى "الانتهاكات الإسرائيلية بحق شعبنا وأرضه ومقدساته الإسلامية والمسيحية، خاصة في مدينة القدس".
وتجدر الإشارة إلى أن هذا هو أول لقاء بين محمود عباس وبابا الفاتيكان بعد نقل السفارة الأمريكية إلى القدس في مايو الماضي.
أكدت صحيفة "وول ستريت جورنال" ارتفاع مستوى الدعم الغربي والإقليمي لقائد الجيش الوطني الليبي المشير خليفة حفتر كشخصية مركزية في الجهود الدولية الرامية لاستعادة الاستقرار في ليبيا.
وأشارت الصحيفة، في تقرير نشرته اليوم، إلى أن حفتر، مع توسيع نفوذه في البلاد، يحظى بدعم متزايد من قبل الدول الأوروبية، فيما تبقى حكومة الوفاق الوطني المعترف بها دوليا في الظل.
وذكرت الصحيفة أن بعض الزعماء الغربيين يعتبرون اليوم حفتر طرفا ضروريا في أي اتفاق سلام مستقبلي، بغض النظر عن رفضه الاتفاق السابق المبرم في عام 2015 وإصداره أمرا بعدم احتجاز الأسرى من المسلحين المجابهين لجيشه.
إقرأ المزيد
السراج يصل الأردن وسط أنباء عن لقاء يجمعه بالمشير حفتر
وأكد التقرير أن حفتر عقد في الأشهر القليلة الماضية اجتماعات مع مسؤولين روس وبريطانيين وإيطاليين وغيرهم، حيث بحثوا مساعي إنهاء القتال وتقديم التسوية السلمية للخلافات الداخلية الليبية.
ونقلت الصحيفة عن مسؤول رفيع في البيت الأبيض قوله: "بطبيعة الحال، سنرى دورا لحفتر في أي مستقبل لليبيا "، ثم تابع، ردا على سؤال حول إمكانية بسط قائد الجيش الوطني حكمه على كامل البلاد، إن ذلك يتوقف على إرادة الشعب الليبي.
وأوضحت الصحيفة أن الشركات النفطية الأوروبية التي لديها مصالح في ليبيا أطلقت مشاريع مشتركة مع حكومة الوفاق، لكن معظم البنى التحتية النفطية تقع بالفعل تحت سيطرة قوات حفتر.
ولفتت الصحيفة إلى أن إيطاليا، بعد وصول حكومة رئيس الوزراء جوزيبي كونتي إلى الحكم، بدأت تسعى إلى التقارب مع حفتر، على حساب تعاونها مع الحكومة المعترف بها دوليا.
وسبق أن أعربت موسكو عن دعمها لقائد الجيش الوطني، الذي التقى غير مرة منذ عام 2016 وزيري الخارجية والدفاع الروسيين سيرغي لافروف وسيرغي شويغو.
وأما بخصوص فرنسا، فقد أرسلت قواتها لمساعدة حفتر في معركة بنغازي، حيث قتل ثلاثة من جنودها عام 2016.
وعلى الصعيد الإقليمي، حصل حفتر على دعم  مصر وعربات عسكرية من الإمارات، حسب المؤسسة الأممية الخاصة بمراقبة تطبيق حظر تصدير الأسلحة إلى ليبيا، وأشارت الصحيفة إلى أن القاهرة وأبوظبي تريان فيه حليفا ضد الجماعات الإسلامية المدعومة من قطر وتركيا.
ولم يجد حفتر بعد سبيلا لتصدير النفط من الحقول الخاضعة لسيطرته خارج إطار المؤسسة الوطنية للنفط بسبب العقوبات الدولية، لكن انتصاره العسكري على الجماعات الإسلامية في درنة في وقت سابق من العام الجاري ومحاولاته بيع النفط خارج إشراف المؤسسة الوطنية تظهر رغبة المشير في التخلص من الاعتماد على حكومة الوفاق والأمم المتحدة.
وذكرت الصحيفة أن حفتر لم يهتم على ما يبدو بالاتهامات الموجهة إلى قواته لتورطها في مخالفات حقوق الإنسان المزعومة شرق ليبيا، ونفى المتحدث باسم القيادة العامة للجيش الوطني، أحمد المسماري، ضلوع أي من ضباطه في حالات التعذيب والتشريد القسري.
وقال المسماري: "تدرك أوروبا أن الجيش الوطني الليبي يمثل قوة حقيقية قادرة على تأمين الحدود الليبية وفرض الأمن على كافة أراضي البلاد".
ونوهت الصحيفة بتهديد حفتر بالتقدم نحو طرابلس وفرض السيطرة على باقي أراضي البلاد بالقوة، حيث يعتقد بعض المحللين أن ذلك لم يكن مجرد كلام فارغ، لكن هذه التصريحات لم تجعل الزعماء الغربيين يتنحون عن المشير.
واختتم التقرير بالنقل عن المحلل الليبي المقيم في القاهرة فوزي الحداد قوله إن الوقت حاليا حليف لحفتر البالغ من العمر 75 عاما، وليس لأي طرف آخرإقرأ المزيد
السيسي يتفقد الآليات الحربية داخل أكبر معرض عسكري في مصر (صور)
ويشارك في المعرض 373 شركة عالمية من صناع أنظمة الدفاع والأمن من 41 دولة، وأكثر من 10 آلاف زائر على مدار 3 أيام