Thursday, September 19, 2019

NIA क्या CBI की ही तरह सरकार का दूसरा 'तोता' है?

चार जून, 2011. लखनऊ में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी. तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मोदी ने एनआईए यानी नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी पर जमकर हमला बोला. तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने कहा कि एनआईए का गठन संघीय ढाँचे के ख़िलाफ़ है और यह राज्यों की क़ानून-व्यवस्था में दख़ल देती है.
मोदी ने कहा कि केंद्र राज्यों को किनारे कर आतंकवाद से अकेले लड़ना चाहती है और यह संघीय ढाँचे के लिए सही नहीं है.
तारीख़ बदली और मोदी मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन गए. इसके साथ ही एनआईए पर उनकी पुरानी सोच भी बदल गई है. पिछले महीने ही मोदी सरकार ने संसद में एनआईए संशोधन बिल 2019 पास कराया.
बिल के पास होने के बाद से एनआईए को और ज़्यादा अधिकार मिल गए हैं. अब आतंकवादी हमलों की जाँच में एनआईए को केंद्र सरकार के आदेश की ज़रूरत है, न कि राज्य सरकारों के आदेश की. अब बिना राज्यों के आदेश के भी एनआईए को इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन का अधिकार मिल गया है.
गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल को संसद में रखते हुए कहा कि इसका हर कोई समर्थन करे ताकि एक संदेश जाए कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत की संसद एक साथ खड़ी है.
विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार एनआईए के ज़रिए भारत को 'पुलिस स्टेट' में तब्दील कर देगी. विपक्ष की इस चिंता पर अमित शाह वैसे ही मुस्कुराए जैसे जून 2011 में सीएम मोदी की चिंता पर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की प्रतिक्रिया थी.
इन्वेस्टिगेशन या प्रॉसिक्युशन एजेंसी?
एनआईए का गठन 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमले के बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने किया था. इसे नेशनल इन्वेस्टिगेशन बिल 2008
मनीष तिवारी ने कहा कि अगर सरकार बिल लेकर आई है तो उसे सुनिश्चित करना चाहिए कि इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन पर नियंत्रण किसी एक का नहीं हो बल्कि दोनों एक दूसरे से स्वतंत्र हों. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण भी मानते हैं क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को सरकार से स्वतंत्र होना चाहिए.
प्रशांत भूषण ने बीबीसी से कहा, ''इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन को स्वतंत्र इसलिए रखा जाता है ताकि मनमानी रोकी जा सके और एक किस्म का चेक रहे. अब सरकार ही जांच का आदेश देगी, सरकार ही चार्जशीट दायर करवाएगी. क़ायदे से इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन को न्यायपालिका के तहत होना चाहिए, लेकिन वह है सरकार के अधीन.''
एनआईए के बने 10 साल हो गए हैं. इन दस सालों में एनआईए ने 244 मामलों की जांच की. एनआईए की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार चार्जशीट दायर होने के बाद इनमें से 37 मामलों पर पूर्णतः या आंशिक रूप से जाँच के बाद फ़ैसले आए.
इनमें से 35 मामलों में सज़ा मिली. इस तरह से देखें तो एनआईए की दोषियों को सज़ा दिलाने की दर 91.2 फ़ीसदी है. एनआईए बनने के बाद पाँच साल तक यानी 2009 से 2014 के बीच इस अहम एजेंसी को महज एक आतंकवादी हमले की जांच को अंजाम तक पहुंचाने में सफलता मिली थी. वो मामला था कोझीकोड बस डिपो ब्लास्ट. इसमें दो लोगों को आजीवन क़ैद की सज़ा मिली थी.
राज्यसभा में 17 जुलाई को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि 2009 में एनआईए बनी. रेड्डी ने कहा, ''2009 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार थी और इस दौरान एनआईए ने 80 मामले दर्ज किए. इनमें से 38 मामलों में फ़ैसले आए 33 मामलों में सज़ा हुई और कन्विक्शन रेट 80 फ़ीसदी रहा. 2014 मई में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से अब तक 195 मामले एनआईए ने दर्ज किए और इनमें से 15 पर फ़ैसले आए और सबमें सज़ा हुई. 100 फ़ीसदी कन्विक्शन रेट रहा.''
सरकार के दावे पर राज्यसभा में कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जहां 100 फ़ीसदी कन्विक्शन की बात की जा रही है उनमें सारी जांच और गिरफ़्तारी राज्यों की पुलिस ने की और उन्होंने उन गिरफ़्तारियों को एनआईए के पास ट्रांसफर कर दिया. एनआईए ने उस पर कुछ नहीं किया. सिंघवी ने कहा, ''आतंकवाद के बड़े मामलों में एनआईए की भूमिका बहुत ही ख़राब है.''
कहा जाता है. एनआई में इन्वेस्टिगेशन यानी जांच शब्द है तो क्या एनआईए केवल जांच एजेंसी ही है? नहीं एनआईए केवल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ही नहीं है, बल्कि प्रॉसिक्युशन एजेंसी भी है.
इन्वेस्टिगेशन यानी किसी भी मामले की जांच और सबूत इकट्ठा करने से है और प्रॉसिक्युशन मतलब मुक़दमा दर्ज होने की बाद की कार्रवाई, जिसमें चार्जशीट दायर करना भी शामिल है.
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में इंसाफ़ की गारंटी के लिए इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन को अलग-अलग रखने की बात कही जाती है. पश्चिम के कई देशों में ऐसा है भी. लेकिन एनआईए के साथ ऐसा नहीं है. सीबीआई के साथ भी ऐसा नहीं है. दोनों इन्वेस्टिगेशन के साथ-साथ प्रॉसिक्युशन एजेंसी भी हैं. यानी एनआईए केंद्र सरकार के आदेश पर जांच शुरू करेगी और जांच के बाद प्रॉसिक्युशन में भी सरकार का दख़ल होगा.
अमेरिका में प्रॉसिक्युशन का काम एफ़बीआई जैसी एजेंसी के पास न होकर जस्टिस डिपार्टमेंट के पास है, इसी तरह ब्रिटेन में मुकदमे चलाने का काम क्राउन प्रॉसीक्युशन सर्विस (सीपीएस) के पास है.
मालेगाँव धमाका (2008) की स्पेशल प्रॉसिक्युटर रोहिणी सालियन ने 2015 में आरोप लगाया था कि इस हमले के अभियुक्तों को लेकर नरमी बरतने के लिए उन पर दबाव बनाया गया.
रोहिणी ने एनआईए के एसपी सुहास वर्के पर यह आरोप लगाया था. रोहिणी ने कहा था कि ऐसा केस को कमज़ोर बनाने के लिए किया गया ताकि सभी अभियुक्त बरी हो जाएं. इस ब्लास्ट में भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी अभियुक्त हैं.
तिवारी ने कहा, ''1997 में विनीत नारायण जजमेंट आया था. इस जजमेंट के आए 22 साल हो गए लेकिन इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन को अब तक अलग नहीं किया जा सका है. इन्वेस्टिगेशन सरकार के फ़ैसले से होगा और प्रॉसिक्युशन पर भी आलाकमान का नियंत्रण होगा तो इंसाफ़ कैसे किसी को मिलेगा? मैं किसी सरकार को दोषी नहीं ठहरा रहा हूं बल्कि यह भारत के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का अहम मुद्दा है.''
रोहिणी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''एनडीए सरकार आने के बाद मेरे पास एनआईए के अधिकारियों का फ़ोन आया. जिन मामलों की जांच चल रही थी उनमें हिन्दू अतिवादियों पर आरोप थे. मुझसे कहा गया वो बात करना चाहते हैं. एनआईए के उस अधिकारी ने कहा कि ऊपर से इस मामले में नरमी बरतने के लिए कहा गया है.''
लोकसभा में एनआईए संशोधन बिल 2019 पर बहस करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी कहा कि इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसिक्युशन बिल्कुल अलग होने चाहिए.